वह एक बेटी थी...........।
एक नन्ही सी परी छोटी सी जान थी,
नई नई आई वह इस दुनिया से अनजान थी,
देख इस दुनिया का मिजाज वह हैरान थी,
लड़की ही सही है आखिर वह भी इंसान थी।
कभी बनी सती तो कभी झुलसी दहेज की आग में,
जो जुल्म हुआ उस पर कि उसकी हंसी मिल गई राख मे,
क्यों वह इस दुनिया के लिए समझी जाती दाग थी,
क्यों इस समाज के लिए उस की पैदाइश नापाक थी।
खुशियों के गुलाब सींचती वह एक माली थी,
उससे ही इस दुनिया की सारी खुशहाली थी।
हर शख्स के खुशियों की झोली उसके बिना खाली थी।
थी वह दुर्गा की रूप जो नीखेरती हरियाली थी।
सत्ता के शिखर पर चढ़ी वह इंदिरा सबकी जान थी,
घर वह भारत कोकिला सरोजिनी विद्वान थी।
अंतरिक्ष पर पहुंची कल्पना देश की शान थी,
हुकूमत की तख्त-ओं सरताज वह रजिया सुल्तान थी।
अरे दुनिया वालों, जरा इतिहास उठा कर देखो,
क्योंकि हर सदी के सुनहरे पन्ने पर एक बेटी महान थी।
बेटी है अनमोल।
आन बान की शान है बेटी,
मां-बाप का सम्मान है बेटी।
फिर भ्रूण हत्या करके क्यों,
मां, बेटी की जान है लेती।
मैं बेटी इतना कहना चाहूं बस,
एक बार जीने का हक तो देती।
मां मेरे भी कुछ सपने होंगे,
मेरी भी कुछ ख्वाहिश होगी।
तू भी मुझ जैसी है बेटी,
दुनिया में आने से पहले।
मुझसे क्यों जिंदगी छीन लेती,
देखना चाहूं मैं सपनों का संसार,
क्यों कर देती इतना लाचार,
बेटी घर की लक्ष्मी होती।
फिर क्यों बेबस होकर रोती,
इस दुनिया से मैं इतना कहना चाहूं बस।
बेटी का सम्मान जानिए,
बेटी की जगह पहचानिए।
बेटी का कोई नहीं मोल,
क्योंकि बेटी है अनमोल।।